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यादों के झरोखे से लेखनी कहानी मेरी डायरी-14-Nov-2022 भाग 25

                 सिद्धि विनायक मन्दिर के दर्शन


       अगले दिन हम मुम्बई के सिद्धि विनायक श्री गणेश जी के दर्शन हेतु गये। इस मन्दिर में दर्शन करले वालौ कीहमेशाभीड़ मिलती है यहाँ पर बडे़ बडे़ फिल्म स्टार दर्शन हेतु आते रहते है।

             यूं तो सिद्घिविनायक के भक्त दुनिया के हर कोने में हैं लेकिन महाराष्ट्र में इनके भक्त सबसे अधिक हैं। समृद्धि की नगरी मुंबई के प्रभा देवी इलाके का सिद्धिविनायक मंदिर उन गणेश मंदिरों में से एक है, जहां सिर्फ हिंदू ही नहीं, बल्कि हर धर्म के लोग दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। 

          हालांकि इस मंदिर की न तो महाराष्ट्र के 'अष्टविनायकों ’ में गिनती होती है और न ही 'सिद्ध टेक’ से इसका कोई संबंध है, फिर भी यहां गणपति पूजा का खास महत्व है। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के सिद्ध टेक के गणपति भी सिद्धिविनायक के नाम से जाने जाते हैं और उनकी गिनती अष्टविनायकों में की जाती है। महाराष्ट्र में गणेश दर्शन के आठ सिद्ध ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल हैं, जो अष्टविनायक के नाम से प्रसिद्ध हैं। लेकिन अष्टविनायकों से अलग होते हुए भी इसकी महत्ता किसी सिद्ध-पीठ से कम नहीं।

               आमतौर पर भक्तगण बाईं तरफ मुड़ी सूड़ वाली गणेश प्रतिमा की ही प्रतिष्ठापना और पूजा-अर्चना किया करते हैं। कहने का तात्पर्य है कि दाहिनी ओर मुड़ी गणेश प्रतिमाएं सिद्ध पीठ की होती हैं और मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में गणेश जी की जो प्रतिमा है, वह दाईं ओर मुड़े सूड़ वाली है। यानी यह मंदिर भी सिद्ध पीठ है।

         इस मंदिर का निर्माण संवत् 1692 में हुआ था। मगर सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक इस मंदिर का 19नवंबर 1801 में पहली बार निर्माण हुआ था। सिद्धि विनायक का यह पहला मंदिर बहुत छोटा था। पिछले दो दशकों में इस मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण हो चुका है। हाल ही में एक दशक पहले 1991 में महाराष्ट्र सरकार ने इस मंदिर के भव्य निर्माण के लिए २० हजार वर्गफीट की जमीन प्रदान की। वर्तमान में सिद्धि विनायक मंदिर की इमारत पांच मंजिला है और यहां प्रवचन ग्रह, गणेश संग्रहालय व गणेश विापीठ के अलावा दूसरी मंजिल पर अस्पताल भी है, जहां रोगियों की मुफ्त चिकित्सा की जाती है। इसी मंजिल पर रसोईघर है, जहां से एक लिफ्ट सीधे गर्भग्रह में आती है। पुजारी गणपति के लिए निर्मित प्रसाद व लड्डू इसी रास्ते से लाते 

       यहाँ दर्शन करने हेतु दो तरह की लाइन लगती है एक लाइन पेड होती है और दूसरी  लाइन फ्री होती है। अधिक भीड़ होने पर पेड लाइन में लगना ठीक रहता है।
   
          यहाँ लड्डू का प्रसाद मिलता है वह भी पेड है यह करौना काल में बन्द कर दिया गयाथा।

     उसके बाद हम लोग घर बापिस आगये।

      कल फिर एक नयी यात्रा पर  तब तक के लिए नमस्कार 

यादों के झरोखे से २०२२

नरेश शर्मा " पचौरी "

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5 Comments

Radhika

05-Mar-2023 08:04 PM

Nice

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shweta soni

03-Mar-2023 10:03 PM

👌👌👌

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अदिति झा

03-Mar-2023 02:29 PM

👍🏼👍🏼

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